दृष्टिकोण पत्र
- जल जीवन का आधार है. यह सत्य जानते हुए भी हमने जल का भयंकर दुरूपयोग किया है. धरती मां के सिने पर नलकूपों के गहरे घाव किए और उसके उपचार ((जल पूनर्भरण) के लिए कुछ भी नहीं किया. सदियों से जो जल प्रकृति ने संचय किया और हमारे पूर्वजों ने धरती के गर्भ में सहेज कर रखा उसे हमने पिछले 20-25 वर्षों में बड़ी निर्दयतापूर्वक उजाड दिया. अगर आज भी हम नहीं चेते तो आने वाली पीढियां हमें कभी क्षमा नहीं करेगी. हमने मालवा अंचल में हर परिवार के लिए पानी का बजट कार्यक्रम चलाया अर्थात पानी कितना लिया और कितना लौटाया इसकी गणना की गई. इस योजना के बहुत ही सुखद परिणाम प्राप्त हुए. अपने पंच से विधायक बनने तक के सफर में मैंने लोगों को भू-जल संरक्षण कार्यक्रम के लिए प्रेरित किया. अपने क्षेत्र में लगभग 200 छोटे-बड़े तालाब बनवाए. हालांकि यह संख्या अभी बहुत बढ़ाना है.
- जवान से तात्पर्य राष्ट्र की वह असली संपदा है जो किसान के रूप में खेतों में हल चला रही है. सेना के रूप में सीमा पर डटकर खड़ी है. शिक्षा चिकित्सा समाजसेवा खेल व्यापार धर्म और पर्यावरण आदि के क्षेत्र में अपना योगदान दे रही है. इन युवाओं को संगठित कर इनकी उर्जा को सही दिशा देकर राष्ट्र को विकसित और सशक्त बनाया जा सकता है. इसी को ध्येय में रखकर संस्था द्वारा राष्ट्रीय एकता सद्भावना यात्रा आयोजित की गई थी जिसके उद्देश्य की प्रशन्सा अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री बाघा सीमा पर तैनात सैनिकों सेना के तीनों अंगों के अध्यक्षों के साथ ही ष्ट्रपतिजी उपराष्ट्रपतिजी व श्रीमति सोनिय गांधीजी ने भी करते हुए संस्था को शुभकानाएं दी थीं.
- जंगल -जंगलों को नष्ट करके हमने स्वयं अपने अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर लिया है. मालवा में कभी जंगल व प्राकृतिक संसाधन प्रचुर मात्रा में थे. विगत 30 वषों में वन्य सम्पदा को बहुत नुकसान हुआ है. हमें विरासत में जो अकुत वन सम्पदा मिली उसे हम सहेज नहीं पाए. अपने इस अपराध का प्रायश्चित हम निरंतर वनों की सेवा करके ही कर सकते हैं. हमारे कार्य क्षेत्र में मेरे संगी साथी एक अभियान चला रहे हैं जिसके तहत सुख-दुख के हर प्रसंग पर पोधारोपण के माध्यम से स्मरणीय बनाते हैं. विशिष्ट कर पांच किस्मों (नीम पीपल तुलसी बढ़ व आम के लाखों पौधे हमने रालामंडल और शहीद पर्वत क्षेत्र में रोपे और लाखों वितरित किए गए. वर्तमान में संस्था का लक्ष्य शहीद पर्वत पर फल-फुल के पौधों और औषधीय वनस्पति को प्रचुर मात्रा में उगाना है.
- जमीन मुझे मेरे देश की माटी से बेहद प्यार है. इसकी आन बान और शान के लिए मैं अपना सर्वस्व न्यौधावर कर सकता हूं. जमीन चाहे काश्मीर की हो या कहीं की हमें उसकी रक्षा-सुरक्षा करनी होगी. वह चाहे पड़ोसी देशों से करनी पड़े आतंकवादियों से करनी पड़े अतिक्रमण करने वालों से करनी पड़े चाहे प्रदूषण और रासायनिक उर्वरकों से. हमारे देश की 80 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है और जमीन पर निर्भर है. आसानी से अधिक फसल पाने की लालसा में हमने रासायनिक दवाओं उर्वरकों का इतना अधिक उपयोग किया कि उससे जमीन की उत्पादन क्षमता समाप्त हो रही है. हमरा राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास है कि किसानों को पुन- जैविक खेती के लिए प्रेरित करें. लोगों के मन में जमीन के प्रति सम्मान का भाव उत्पन्न करें. जैसा कि हमारे पूर्वजों के मन में था.
- जानवर (गौरक्षा गौमाता हमारी प्रथम पूज्य संरक्षक है जिसे पुराणों में देवी के रूप में पूजा गया है. वर्तमान में इनकी दशा अत्यंत दयनीय है. विशिष्टकर प्लास्टीक खा लेने और कुपोषण के कारण गायों के स्वास्थ्य में निरंतर गिरावट आ रही है. हमें बहुत ही तत्परता और गंभीरता के साथ इस पर ध्यान देना होगा.